Background of HARSHVDHAN JAIN
नमस्कार दोस्तों, आज हम एक ऐसे व्यक्ति के बारे जानेंगे जिनके पैदा होने से पहले ही उनके घर वाले बोलते थे कि महापुरुष आने वाले हैं। तो चलिए आगे जानते हैं कि ये महापुरुष हैं कौन?
हर्षवर्धन जैन का जन्म सन् 1980 में जयपुर से 18 किलोमीटर दूर एक गांव में हुआ। इनके माता पिता के शादी के 11 साल बाद भी कोई सन्तान नहीं हो रहा था तो इनके माता पिता एक पंडित के पास जा कर पुछा कि हमारी कोई सन्तान नहीं हो रहा है तो पंडित जी ने जवाब दिया कि महापुरुषों को आने में देर होती है। और सच में आज हर्षवर्धन जी एक महानपुरुष हैं। ये एक नटखट लड़का थे बचपन में और पढ़ाई लिखाई में गोल थे, इन्हें पढ़ाई लिखाई छोड़ कर बाकि सभी कामों में बहुत मजा आता था ये एक खुशमिजाज लड़का थे और अभी भी हैं। इन्होंने बचपन से ही रिस्की लेना सिखा इन्हें जब तैरने नहीं आता था और बाकी बच्चे सभी पानी में छलांग लगाकर नहाते थे तो उन्हें वह गौर से देखता था और ये भी बिना किसी के सहारे पानी में कूद जाता था और दुसरे बच्चों को देख कर उनसे बहुत तेज तैरता था और बचपन में सोचा था कि एक तैराक बनूंगा पर इसे कोई सिखाने वाले नहीं थे इसलिए वह तैराक नहीं बन पाए। फिर इसने अपने दोस्तों को क्रिकेट खेलते हुए देखा और क्रिकेट में उस आसपास के लड़कों में से सबसे अच्छे खेलते थे। ये जिला तक खेल चुके हैं जो दुनिया के सबसे तेज सेंचुरी 37 गेंदों में बनाया है उसके दूसरे नंबर पर ये ही हैं 29 गेंदों में। इन्होंने क्रिकेट में अपना कदम रखने की सोची पर कोच नहीं होने के कारण कदम नहीं रख पाए। फिर इन्हें गाड़ी चलाना बहुत अच्छा लगता है ये आज तक करीबन 3 लाख किलोमीटर मोटरसाइकिल चलाई है और साढ़े चार लाख कार चलाई है।
इनकी पढ़ाई 7 तक गांव में ही और 8 से 12 तक जयपुर में।
इनके पिता इन्हें कभी भी किसी भी चीज के लिए इन्कार नहीं करते थे और हमेशा बडा़वा देते थे। ये जब ग्यारहवीं बारहवीं पढ़ रहे थे तो इनके लिए उनके पापा गाड़ी खरीद दिए थे पर जब ये सन् 1999 में B. Sc 1st year में फेल हो गए तो इन्होने खुद से पापा का हर चीज दिया हुआ टेबल में रख दिया और स्कूल पैदल आया जाया करते थे इनकी जो बस का खर्च था आने जाने का तीन रूपये और इस तीन रुपए में वह एक रुपया हर दिन बचाता था कुछ दूर पैदल चल कर और तीसरे दिन वह तीन रुपये बचा कर कचोडी खाता था। इस तरह वह मेहनत क्या होता है जानना शुरू किया। वह अपना साइंस विषय बदल कर आर्ट्स विषय ले लिया दर्शनशास्त्र का और 1st year पास करके 2nd year गया 2nd year चल ही रहा था कि उनकी जिन्दगी ने एक नया मोड़ पा लिया। ये बात 29 सितंबर 2000 की है, इनका एक दोस्त आय और बताया कि अमेरिका से एक कम्पनी आया है जो पुरी जीवन बदल देगी। इसने भी बड़ी खुशी से अपने दोस्त के साथ चल दिया उस मीटिंग में और वहां जा कर उन्हें लगा मानो वह जन्नत मिल गई हो। उसने तुरंत जॉइन कर लिया आज वह एक trainer हैं जो लोगों को motivate करते हैं वे कहते हैं कि ये एक मात्र एक ऐसा business हैं जहां हर व्यक्ति उस मुकाम तक पहुंच सकता है जहां वह पहुंचना चाहता है ये business ही HARSHVDHAN जी को जमीन से आसमान दिखाया है।
दोस्तों ये टॉपिक कैसा लगा comment करके जरूर बताएं और ये भी बताएं कि अगला टॉपिक किसके बारे लिखूँ
हर्षवर्धन जैन का जन्म सन् 1980 में जयपुर से 18 किलोमीटर दूर एक गांव में हुआ। इनके माता पिता के शादी के 11 साल बाद भी कोई सन्तान नहीं हो रहा था तो इनके माता पिता एक पंडित के पास जा कर पुछा कि हमारी कोई सन्तान नहीं हो रहा है तो पंडित जी ने जवाब दिया कि महापुरुषों को आने में देर होती है। और सच में आज हर्षवर्धन जी एक महानपुरुष हैं। ये एक नटखट लड़का थे बचपन में और पढ़ाई लिखाई में गोल थे, इन्हें पढ़ाई लिखाई छोड़ कर बाकि सभी कामों में बहुत मजा आता था ये एक खुशमिजाज लड़का थे और अभी भी हैं। इन्होंने बचपन से ही रिस्की लेना सिखा इन्हें जब तैरने नहीं आता था और बाकी बच्चे सभी पानी में छलांग लगाकर नहाते थे तो उन्हें वह गौर से देखता था और ये भी बिना किसी के सहारे पानी में कूद जाता था और दुसरे बच्चों को देख कर उनसे बहुत तेज तैरता था और बचपन में सोचा था कि एक तैराक बनूंगा पर इसे कोई सिखाने वाले नहीं थे इसलिए वह तैराक नहीं बन पाए। फिर इसने अपने दोस्तों को क्रिकेट खेलते हुए देखा और क्रिकेट में उस आसपास के लड़कों में से सबसे अच्छे खेलते थे। ये जिला तक खेल चुके हैं जो दुनिया के सबसे तेज सेंचुरी 37 गेंदों में बनाया है उसके दूसरे नंबर पर ये ही हैं 29 गेंदों में। इन्होंने क्रिकेट में अपना कदम रखने की सोची पर कोच नहीं होने के कारण कदम नहीं रख पाए। फिर इन्हें गाड़ी चलाना बहुत अच्छा लगता है ये आज तक करीबन 3 लाख किलोमीटर मोटरसाइकिल चलाई है और साढ़े चार लाख कार चलाई है।
इनकी पढ़ाई 7 तक गांव में ही और 8 से 12 तक जयपुर में।
इनके पिता इन्हें कभी भी किसी भी चीज के लिए इन्कार नहीं करते थे और हमेशा बडा़वा देते थे। ये जब ग्यारहवीं बारहवीं पढ़ रहे थे तो इनके लिए उनके पापा गाड़ी खरीद दिए थे पर जब ये सन् 1999 में B. Sc 1st year में फेल हो गए तो इन्होने खुद से पापा का हर चीज दिया हुआ टेबल में रख दिया और स्कूल पैदल आया जाया करते थे इनकी जो बस का खर्च था आने जाने का तीन रूपये और इस तीन रुपए में वह एक रुपया हर दिन बचाता था कुछ दूर पैदल चल कर और तीसरे दिन वह तीन रुपये बचा कर कचोडी खाता था। इस तरह वह मेहनत क्या होता है जानना शुरू किया। वह अपना साइंस विषय बदल कर आर्ट्स विषय ले लिया दर्शनशास्त्र का और 1st year पास करके 2nd year गया 2nd year चल ही रहा था कि उनकी जिन्दगी ने एक नया मोड़ पा लिया। ये बात 29 सितंबर 2000 की है, इनका एक दोस्त आय और बताया कि अमेरिका से एक कम्पनी आया है जो पुरी जीवन बदल देगी। इसने भी बड़ी खुशी से अपने दोस्त के साथ चल दिया उस मीटिंग में और वहां जा कर उन्हें लगा मानो वह जन्नत मिल गई हो। उसने तुरंत जॉइन कर लिया आज वह एक trainer हैं जो लोगों को motivate करते हैं वे कहते हैं कि ये एक मात्र एक ऐसा business हैं जहां हर व्यक्ति उस मुकाम तक पहुंच सकता है जहां वह पहुंचना चाहता है ये business ही HARSHVDHAN जी को जमीन से आसमान दिखाया है।
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